2 - المعتقل
قصة قصيرة جدا
ابراهيم درغوثي / تونس
عند الفجر، جاء العسس يدقون بأحذيتهم الغليظة أرض المعتقل .
أفاق من نومه قبل أن يفتحوا عليه الباب ، وجلس يفرك عينيه بيديه اللتين كاد يجمدهما البرد .
أشار له قائد المفرزة بالوقوف ، فوقف . ومشى رجال الشرطة العسكرية فمشى أمامهم .
حين وصلوا ساحة تنفيذ الإعدام، رأى جمعا من السجناء مقيدي الأيدي والأرجل ومعصوبي الأعين ، فقال في قلبه : ما أكثرهم في هذا اليوم الشاتي. ولم يزد ، فقد اعتاد على عمله .
ومد له قائد المفرزة السكين ، فبدأ في ذبح الرجال المكومين على الأرض
وحدا وراء الآخر وهو يذكر اسم الله وراء كل رأس تقطع .
قصة : المعتقل
ترجمتها إلى الهندية : جينيازا شوكلا / الهند
The detention
Translated by: Jignasa Shukla
कैदखाना
लेखक्- ब्राहिम दारघूथी
अनुवादक- जिज्ञासा शुक्ल
प्रातः होते ही पहरेदार अपने कर्कश जूतों को कैदी के रहने की जगह पर जो़र-जो़र से पाँव मारते हुए आए । उन के द्वार खोलने से पहले वह ठंडी के कारन जमे हुए हाथों से अपनी आँखो को मलता हुआ उठ चूका था । मुख्य पहरीदार ने उसे खडे होने का संकेत दिया और वह खडा हो गया । फौजी पुलीसचल दी ओर वह उन के पीछे चल दीया । जब वे फाँसी देने वाले कमरे में पहूंचे तो उस कैदी ने बहुत सारे कैदियों को देखा । उन के हाथ -पाँव बाँध दिये गए थे और उन की आँखो पर पट्टी बाँधी गई थी ।
उस ने अपने आप से कहा कि इस वर्षा के दिन इन में
से बहुत सारे कैदी है ।
उस ने और कुछ नहीं बोला क्योंकि ऐसा काम वह रोज़ करताथा । मुख्य पहरी ने उसे चाकू थमा दिया । वह एक-एक करके प्रभु का नाम ले कर नरसंहार कर उन के सिर काट ने लगा ।